Tuesday, July 27, 2010

ग़ज़ल

धुंए में डूबी हुई दूर तक फि़ज़ाएं हैं
ये ख्‍़वाहिशों की सुलगती हुई चिताएं हैं
ये अश्‍क और ये आहें तुम्‍हारी याद का ग़म
ये धड़कनें किसी साइल की बद्दुआएं हैं
(साइल : प्रार्थी)
ए ख़ुद परस्‍त मुसाफि़र तेरे तआकुब से
रवां दवां मेरे एहसास की सदाएं हैं
( तआकुब : पीछा करना, रवां दवां : प्रवाहित)
तिरी निगाहे करम की हैं मुंतजि़र कबसे
झुकाये सर तिरे दर पर मिरी वफ़ाएं हैं
( मुंतजि़र : प्रतीक्षारत )
गुलाब चेहरे हैं रोशन तमाज़तों के यहां
सरों पे उनके रवायात की रिदाएं हैं
( तमाज़त : धूप की गर्मी, रिदा - चादर )
है कैसा दौर के फ़न और क़लम भी बिकने लगे
हर एक सिम्‍त मफ़ादात की हवाएं हैं
( मफादात : लाभ का बहुवचन)
अजीब रंग है मौसम का इस बरस नुसरत
तपिश के साथ बरसती हुई घटाएं हैं

12 comments:

नीरज गोस्वामी said...

एक निहायत खूबसूरत ग़ज़ल और उतने ही खूबसूरत ब्लॉग के साथ आपने ब्लॉग जगत में आगाज़ किया है , हम शायरी के दीवाने ब्लोगर तहे दिल से आपका इस्तकबाल करते हैं और उम्मीद करते हैं के अब आपके अशआर लगातार हमें पढने सुनने को मिलते रहेंगे...इस दिन का मुद्दत से इंतज़ार था...देर आयद दुरुस्त आयद...

नीरज

दिगम्बर नासवा said...

नमस्कार नुसरत जी ....
आपकी ग़ज़लों और आप का इतना ज़िक्र सुना है की आए बिन रह नही सकता था आपके ब्लॉग पर .....
आपका स्वागत है ब्लॉग जगत पर ... आपकी ग़ज़लों, नज़्म और रचनाओं के माध्यम से बहुत कुछ जानने और सीखने को मिलने वाला है .... आपकी रचनाओं की प्रतीक्षा रहेगी ...

निर्मला कपिला said...

अजीब रंग है मौसम का इस बरस नुसरत
तपिश के साथ बरसती हुई घटाएं हैं
और साथ ही अब इस बरसात मे आपके ब्लाग पर गज़लों की बरसात का आनन्द भी हमे मिलेगा। बहुत बहुत स्वागत है आपका। आपसे मिलने का हमे जो सौभाग्य प्राप्त हुया है उसके लिये अपने छोटे भाई सुबीर की धन्यवादी हूँ। आपको शुभकामनायें।इन्तजार रहेगा आपकी अगली पोस्ट का।

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

आदरणीय नुसरत जी,
यह मेरी भी इच्छा थी कि आप जैसे बेहतरीन शाइरा को एक ब्लॉग हो जहाँ हम एक जगह आपके कलाम से आपके अंदाजे-बयान से रु-ब-रु हो सकें. बहुत बहुत स्वागत आपका और शुक्रिया पंकज आचार्य जी का लिंक भेजने के लिए.

यह ग़ज़ल बार बार पढने योग्य है. बहुत सुन्दर!!

- सुलभ

दीपक 'मशाल' said...

आपका बहुत नाम सुना था.. ब्लॉग पर लिखते देख बहुत ख़ुशी हो रही है.. रचना आपके नाम के कद की ही है, मैं तो कुछ कहने लायक नहीं वैसे.. स्वागत है मैम..

Rajeev Bharol said...

नुसरत जी,
ब्लॉग के लिए धन्यवाद. आपकी यह गज़ल बहुत अच्छी है. उम्मीद है अब हमें और ग़ज़लें एवं नज्में पढ़ने के लिए मिलेंगीं. ब्लॉग बहुत सुंदर भी दिख रहा है.

-राजीव

seema gupta said...

आदरणीय नुसरत जी
शायद मै उन खुशनसीबों में से हूँ, जिन्हें आपसे रूबरू होने का मौका मिला है....... कैसे भूल सकती हूँ "विरह के रंग" काव्य संग्रह विमोचन के समय आपके साथ बिताये वो अनमोल और अविस्मरनीय पल . आपका ब्लॉग जगत में हार्दिक स्वागत है...बेहद ख़ुशी है की अब आपको पढने के स्वर्णिम अवसर मिलते रहेंगे.
regards

Ankit said...

आदरणीय नुसरत जी नमस्कार,
आप का ब्लॉग हम नौसिखियों के लिए काफी मददगार रहेगा, और अब तो आप की ग़ज़लों और नज्मों को भी हमें आसानी से पढने का मौका मिलेगा. आपकी ग़ज़ल के बारे में कुछ कहूं तो वो कम ही होगा,

"धुंए में डूबी हुई दूर तक फि़ज़ाएं हैं
ये ख्‍़वाहिशों की सुलगती हुई चिताएं हैं"
मतला एक अजीब सी कशिश लिए हुए है, मिसरा-ए-उला और सनी आँखों में एक मंज़र बना दे रहे हैं.
पूरी ग़ज़ल ही सहेजने के लिए है, कुछ शेर तो लबों से उतरने का नाम ही नहीं ले रहे,

"ये अश्‍क और ये आहें तुम्‍हारी याद का ग़म
ये धड़कनें किसी साइल की बद्दुआएं हैं"

"तिरी निगाहे करम की हैं मुंतजि़र कबसे
झुकाये सर तिरे दर पर मिरी वफ़ाएं हैं"

कंचन सिंह चौहान said...

बताने की ज़रूरत नही है ना दीदी कि इस ब्लॉग को देख कर कितनी खुशी रही है मुझे।

आपको खूब खूब और खूब पढ़ना चाहती हूँ....! अब बस लिखती रहियेगा इस जगह।

सादर

कंचन सिंह चौहान said...
This comment has been removed by the author.
ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι said...

है कैसा दौर फ़न और कलम भी बिकने लग गये,
हर एक सिम्त मफ़ादात की हवाएं है।
बहुत सुन्दर शे"र ओ ग़ज़ल।

अशोक कुमार मिश्र said...

निहायत ही खूबसूरत गज़ल ....

बेदिली, बेख्‍़वाहिशी के दौर में लौटे हो तुम|
अब मुझे तुमसे कोई शिकवा गिला कुछ भी नहीं|

कितनी गूढ़ बात कह दी है बात आपने इन चंद लाइनों में और ये अंतिम लाइन तो अंतस को छू गई .......
http://nithallekimazlis.blogspot.com/

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